दासी की सील तोड़ी
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दासी – मुखिया के लंड से कुवारी चुत की सील टूटी
पागढ़ गांव का एक मंदिर है , जो आज भी दासी प्रथा को शिद्दत से पालता है। इस गांव में आज भी लोग हार साल एक नई दासी को नियुक्त करते है जो पुरे गांव की सेवा करती है , अपने जिस्म को अर्पण कर।
“मुखिया जी, समय आगया है गांव के लिए एक नई दासी को नियुक करने का।”
“हाँ हाँ श्रीमंत पाटिल , मुझे आभास है इस बात का। सबसे पहले भोग भी तो हम दोनों ही लगाएंगे ना। ” हस्ते हुए मुखिया ने ये बात कही।
“इस बार भोग की शुरवात मुजी से होनी चाहिए , दूसरा नंबर आप लगा लेना। आपकी पेशकी आपको मिल जाएगी। ”
“बेफिक्र रहिये आप , कुछ बहुत ही सूंदर लड़किया इस साल आगे आई है दासी सेवा के लिए। मैं कल ही नियुक्ति पूरी करने वाला हु , दामिनी बाई भी शोलापुर से आगई है।“
“चलिए फिर खुश खबर सुनाइये जल्दी से , मुझे इंतज़ार रहेगा।“ श्रीमंत पाटिल अपने घर चले गए और मुखिया जी उसी वक़्त दामिनी बाई की महफ़िल की तरफ चल पड़े।
बाई की महफ़िल काफी रंगीन थी हमेशा की तरह , हर कमरे में चुदाई चल रही थी। मुखिया ने बाई से कहा , “क्या बात है , यहाँ तो जलसा है। ”
“आओ आओ मुखिया , बताओ आज किसके साथ बैठोगे ?”
“हम्म , चलो आज कविता के साथ बैठ जाता हु। और हाँ ठुकाई के बाद तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। ”
“हाँ हाँ , मैं यही हु। तुम बस बात करने लायक दम बचाये रखना , वर्ना कविता पूरा चूस लेगी। ” हस्ते हुए बाई ने कहा।
“अरे ओ दामिनी बाई तुम्हे मेरे दम का अंदाज़ा नहीं है। आकर तुम्हे भी थोड़ा जलवा दिखाता हु आज। ”
“अच्छा , ठीक है फिर , तुम्हारा लंड चूसूंगी फिर बात करेंगे। ” मुखिया को चिढ़ाते हुए बाई ने कहा।
मुखिया कविता के साथ कमरे के अंदर गया और जल्दी से उसके कपडे उतारने लगा , कविता उसके लंड को पकड़ कर मसल रही थी। मुखिया का लंड खड़ा होने लगा था और अब कविता के नंगे जिस्म को देखकर पूरी तरह से तन गया था।
कविता ने मुखिया का खड़ा लंड देख कर रहा , “आपका लंड तो बुढ़ापे में भी मस्त है। ”
“अरे मेरी रानी लंड का असली मज़ा तो तुजे चुत के अंदर लेने के बाद ही आएगा। ”
“daalo फिर देर किस बात की है। ”
कविता अपनी टैंगो को फैलाकर बिस्तर पर लेट गई और मुखिया अपना तना हुआ लंड लेकर कविता पर चढ़ गया। vah कविता की गीली और गरम चुत को टपाटप ले रहा था , और कविता मज़े से कराह रही थी , “आह आह उफ़ , मुखिया जी। ”
काफी मज़ेदार झटको के बाद मुखिया कविता की चुत में झड़ गया।
“अरे क्या मुखिया आप भी बिना कंडोम के चुत में झडगाये मेरी। अब क्या is उम्र में माँ बनाओगे मुझे।”
“इतनी जिग-जिग क्यों करती है , चुत को अचे से साफ़ करले और अगर गरब धारण करलिया तूने तो बच्चा मेरी चौखट पर छोड़ जाना। ”
अपनी धोती पहनकर मुखिया बहार आगया और दामिनी बाई के पास जाकर बैठ गाय। “मज़ा आया मुखिया तुम्हे ?”
“हाँ हाँ , कविता ने पूरा मज़ा दिया। ”
“बढ़िया , तो बताओ अब क्या बात करनी थी तुम्हे। ”
“देखो अब गांव के लिए हमने एक नई दासी की ज़रूरत है , जिन्होंने अब तक सेवा की है गांव वालो का मन उनसे ऊब चूका है। ”
“हम्म , तो एक कुवारी चुत की ज़रूरत है तुम्हे ?”
“हाँ , कोई है तुम्हारी नज़र मैं?”
“साथ लेकर ही आई हु उससे। ” चहरे पर चहक के साथ दामिनी बाई ने कहा।
“क्या बात है , तुम्हारा तो कोई जवाब नई दामिनी बाई। चलो अब जल्दी से मुँह दिखाई करवादो। ”
“अरे कविता , जा ज़रा अंदर से रज़िया को ले आ। ”
रज़िया बस १८ वर्ष की कुवारी थी , उसका जिस्म काफी सुडोल था और मुम्मे मस्त भरे हुए। गोरा रंग और लाल होठ। रज़िया का ऐसा रूप देखकर तो मुखिया की नियत पूरी तरह से बिगड़ चुकी थी। उसने दामिनी बाई से कहा , “इससे कहा से ले आई ? गांव वाले थो इससे कच्चा चबा जायेंगे। इस खूबसूरत कलि तो बस मैं ही सुंगगूंगा।”
“तुम सुंगों या गांव वाले, दाम काफी उचा है। ”
“दिया समझो , इससे तो मैं लेकर जा रहा हु। ”
रज़िया के बदले एक मोटी रकम देकर मुखिया उससे अपने घर ले आया। उसने अपनी दोनों बेटियों को बताया की रज़िया उनके घर काम करने आई थी। मुखिया की दोनों बेतिया , अवन्ति और बसंती को इस बात पर शक था लेकिन उन्होंने अपना शक ज़ाहिर होने नहीं दिया।
रज़िया को मुखिया ने अपने घर के बहार एक कोठी मैं रखा था, जब रात को उसकी दोनों बेतिया सोगई तब मुखिया चुपके से रज़िया की कोठी पर गाय। “तू तो बहुत ही सूंदर है री। कहा से है तू ?”
“मैं कश्मीर से हु साहब , जब छोटी सी थी मैं तो मेरे माँ बाप ने मुझे चाची के हवाले कर दिया था। वह मुझसे बहुत काम करवाती थी , अब भला हो दामिनी बाई का की वह मुझे यहाँ ले आई और आपको सोप दिया। ”
“अरे तेरी कहानी में तो काफी दर्द है , लेकिन तू बिलकुल फ़िक्र मत कर , मैं तुजे बहुत खुश रखूँगा। ”
रज़िया मुस्कुराई और उसने मुखिया से पूछा , “तो यहाँ मेरा काम क्या रहेगा ?”
“तुजे कोई मेहनत वाला काम नहीं करना है , उसके लिया मेरी दोनों बेटिया है ना , मेरी बीवी के गुज़र जाने के बाद उन्होंने ने ही पूरा घर संभाला है। तुजे बस मेरे साथ मेरी बीवी जैसे बनकर रहना है। ”
“लेकिन मुझे तो ऐसा कुछ नहीं आता मुखिया जी। ”
“तू बिलकुल फ़िक्र मत कर , मैं तुजे सब कुछ सीखा दूंगा। सबसे पहले तू अपने कपडे उतार दे। ”
“आपके सामने ?”
“हाँ हाँ , बीविया अपने पति से पर्दा थोड़ी करती है। ”
“लेकिन मुझे शर्म आ रही है। ”
“शर्माओ नहीं , जल्दी से खोलो अपने कपडे। ”
रज़िया ने अपनी कुर्ती और सलवार को मुखिया के कहने पर उतार दिया। उसकी चूचिया काफी गोरी थी और निप्पल का रंग गुलाबी था। रज़िया की चूचिया भरी हुई थी। उसकी झंगे भी बहुत खूबसूरत थी , वह अपने हाथो से अपने जिस्म को धक्ने की कोशिश कर रही थी।
उसका नंगा जिस्म देखकर मुखिया का लंड पूरी तरह से खड़ा होगया। वह रज़िया के पास गया और उसे कहा , “देखो तुम बिलकुल घबराना नई, मैं बस तुम्हारे साथ वही करूँगा जो एक पति पत्नी के साथ करता है। ”
मुखिया रज़िया को चूमने लगा और उसके जिस्म को छूने लगा , रज़िया को कुछ समज नहीं आ रहा था लेकिन वह बस मुखिया को एक भला आदमी समज कर उसके हवाले हो चुकी थी।
मुखिया ने रज़िया के हाथो को हटाया और उसके मुम्मो को चूसने लगा , रज़िया के जिस्म में उत्तेजना की शुरवात होगई और उसकी चुत हलकी हलकी गीली होने लगी। मुखिया से उसने कहा , “मुझे पेशाब आ रहा है। ”
“ठीक है , वह कोने में जाकर करलो।”
रज़िया पेशाब करने बैठी लेकिन उसे पेशाब नहीं हुई , मुखिया ने उससे कहा , “अरे पगली लगता है आज पहली बार तेरी चुत गीली हुई है। यहाँ आजा मैं बताता हु क्या करना है। ”
जैसे ही रज़िया मुखिया के पास आई , मुखिया ने उसकी दोनों टांगो को फैलाया और उसके पेरो के बिच बैठकर उसकी चुत को चाटने लगा। रज़िया की चुत और ज़्यादा गीली होने लगी और उसने मुखिया से कहा , “मुझे कुछ हो रहा है। ”
“अच्छा या बुरा?”
“अच्छा , लेकिन सर मानो जैसे नशे से भारी हो रहा है मेरा। ”
“घबरा नहीं , बस मज़े ले। ”
मुखिया जी तंग चुत का भरपूर आनद लेने लगे और रज़िया पूरी तरह से नशे में खो चुकी थी। फिर कुछ ही पलो में मुखिया खड़ा हुआ और अपनी धोती उसने खोल दी। रज़िया को उसने अपना खड़ा लंड दिखाया , रज़िया ने मुखिया से पूछा , “ये क्या है ?”
“बेटा इसे लंड कहते है। जैसे तुम अपनी चुत से मुतती हो मर्द अपने लंड से मूतते है।”
“अच्छा। लेकिन ये इतना सख्त क्यों होगया है ?”
“तुम्हारी वजह से , अब हम दोनों को मिलकर इससे नर्म करना होगा। ”
“ठीक है , तो बताओ आप क्या करना है। ”
“अब जो हम करेंगे ना , उस्समे तुम्हे थोड़ा सा दर्द होगा , लेकिन उतना मज़ा भी आएगा। ”
“अच्छा। ”
“आओ यहाँ बिस्तर पर लेट जाओ अपनी टांगो को फैलाकर। ”
रज़िया ने बिलकुल वैसा ही किया और फिर मुखिया अपना खड़ा लंड उसकी चुत पर मसलने लगा। “ये क्या कर रहे हो आप , आह आह ! मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। ”
झट से मुखिया ने अपना लंड रज़िया की चुत में डाला और वह चीख पड़ी। मुखिया अपना लंड अंदर बहार करता रहा और रज़िया दर्द से “उफ़ , उइमाँ ” कर रही थी। “बस अब कुछ पल और , तुम्हे बहुत मज़ा आएगा। ”
फिर मुखिया ने रज़िया की जमकर ठुकाई की और उसकी चुत से खून से साथ पानी भी निकाला , मुखिया चुदाई में इतना ज़्यादा मग्न होगया था की उसे अपने झड़ने का ख्याल ही नहीं रहा और वह रज़िया की चुत के अंदर झड़ गया।
“आह! क्या चुदाई का मज़ा आया है आज। तुजे मज़ा आया?”
“मज़ा तो आया मुखिया जी लेकिन दर्द भी उतना ही हुआ। ”
“घबरा नहीं, अगली बार जब हम करेंगे तो तुजे दर्द नहीं होगा बस मज़ा आएगा।“
मुखिया अपने कपडे दोबारा पहनकर अपने घर के लिए निकल रहा था , उसे इस बात का तो रत्ती भर भी अंदाज़ा नहीं था की उसकी दोनों बेटिया खिड़की से सब कुछ देख रही थी।
मुखिया जैसे ही अपने घर पहुचा तो उसकी दोनों बेटिया अवन्ति और बसंती ने उससे पूछा , “कहा गए थे आप ?”
“अरे तुम दोनों सोई नहीं अब तक ?”
“नहीं हम आपकी अश्लील हरकत को अपनी आखों से देख रहे थे। ”
“क्या मतलब है ?” मुखिया ने गुस्से से गुराते हुए पूछा।
“उस रज़िया को अपनी रखेल बनाकर लाये हो ना? यहाँ घर पर शादी के लायक दो दो बेटिया है आपकी और आप उस कुलटा के साथ रंग रलिया मना रहे हो। ”
“अपना मुँह बंद करो , वरना छड़ी से सुताई होगी तुम्हारी। ”
“आप क्या सुताई करोगे हमारी , हम आज आपकी छड़ी के मज़े खुद लेने वाले है। ”
“क्या मतलब है तुम्हारा ?”
फिर अचानक अवन्ति और बसंती दोनों ने अपने घागरो को उठा लिया और मुखिया को अपनी गीली चुत के दर्शन करवाए। मुखिया पूरी तरह से हैरान था , उसने अपनी आखों को बंद कर लिया। लेकिन बसंती ने उसे कहा , “देखो अगर आज अपने हम दोनों की प्यास अपने मोठे लंड से नहीं बजाई तो हम पुरे गाव में ढिंढोरा पीटेंगे की अपने बस अपने लिए एक दासी को घर पर रखा है। ”
मुखिया इस बात को सुनकर पूरी तरह से हिल गया , क्युकी उससे श्रीमंत को किया गया वादा याद आगया।
मन ही मन में मुखिया से सोचा , “ये केसा संकट आन पड़ा , शायद मेरे पापो की सजा है। ”
अवन्ति बोली , “क्या सोच रहे हो बापू , हम दोनों आपकी उस रखेल से ज़्यादा मज़ा देंगी। ”
“हट साली नालायको। ” मुखिया की आंखे तो अब भी बंद थी लेकिन दोनों लड़किया तुरंत हस्ते हुए उसके पास चली गई और उसकी धोती को खोल दिया , वह दोनों मुखिया के लंड पर टूट पड़ी और जंगली कुत्तियों की तरह उससे चाटने और चूसने लगी।
मुखिया को इस चटाई का बहुत मज़ा आ रहा था , न चाहते हुए भी उसे अपने आप को अपनी बेटियों की हवस के हवाले सोप दिया।
अवन्ति ने मुखिया को ज़मीन पर लेटा दिया और बसंती अपने बाप के चेहरे पर बैठ गई , “चाटो बापू मेरी गीली चुत को। ”
अवन्ति अपने बाप के खड़े लम्बे लंड पर बैठ कर फुदक रही थी।
“आह उफ़… ” की आवाज़े पुरे घर में गूंज रही थी।
उस पूरी रात दोनों लड़कियों ने अपने बाप से जम कर चुदाई करवाई। मुखिया सुबह अपने आप को शर्मिंदगी की हालत में किसी तरह संभाल कर रज़िया के पास गया।
रज़िया को उसने सब कुछ बताया और ये भी कहा की , “मेरी हवस ने मुझे ही अपना शिकार बनादिया है। बस एक ही प्रायश्चित करना मेरे ज़हन में आ रहा है , की मैं तुम्हे दासी ना बनने दू , नाही मेरी और ना इस गांव की। ये लो कुछ पैसे और यहाँ से भाग जाओ।
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मेरी अगली कहानी का शीर्षक है “अजनबी से करवाई चुदाई”
धन्यवाद।
नमस्कार।।